Revision Notes for Chapter 5 पर्वत प्रदेश में पावस Class 10 Sparsh
CBSE NCERT Revision Notes1
पावस ऋतु थी, पर्वत प्रदेश,
पल-पल परिवर्तित प्रकृति-वेश।
पल-पल परिवर्तित प्रकृति-वेश।
Answer
इस कविता में कवि सुमित्रानंदन पंत जी ने पर्वतीय इलाके में वर्षा ऋतु का सजीव चित्रण किया है। पर्वतीय प्रदेश में वर्षा ऋतु होने से वहाँ प्रकृति
में पल-पल बदलाव हो रहे हैं। कभी बादल छा जाने से मूसलधार बारिश हो रही थी तो कभी धूप निकल जाती है।
में पल-पल बदलाव हो रहे हैं। कभी बादल छा जाने से मूसलधार बारिश हो रही थी तो कभी धूप निकल जाती है।
2
मेखलाकर पर्वत अपार
अपने सहस्त्र दृग-सुमन फाड़,
अवलोक रहा है बार-बार
नीचे जल में निज महाकार,
-जिसके चरणों में पला ताल
दर्पण सा फैला है विशाल!
अपने सहस्त्र दृग-सुमन फाड़,
अवलोक रहा है बार-बार
नीचे जल में निज महाकार,
-जिसके चरणों में पला ताल
दर्पण सा फैला है विशाल!
Answer
पर्वतों की श्रृंखला मंडप का आकार लिए अपने पुष्प रूपी नेत्रों को फाड़े अपने नीचे देख रहा है। कवि को ऐसा लग रहा है मानो तालाब पर्वत के चरणों में पला हुआ है जो की दर्पण जैसा विशाल दिख रहा है। पर्वतों में उगे हुए फूल कवि को पर्वत के नेत्र जैसे लग रहे हैं जिनसे पर्वत दर्पण समान तालाब में अपनी विशालता और सौंदर्य का अवलोकन कर रहा है।
शब्दार्थ:
• पावस-ऋतु - वर्षा ऋतु
• परिवर्तित - बदलता हुआ
• प्रकृति वेश - प्रकृति का रूप
• मेखलाकार - मंडप के आकार वाला
• अपार - जिसकी सीमा न हो
• सहस्र - हज़ारों
• दृग-सुमन - फूल रूपी आँखें
• अवलोक - देख रहा
• निज - अपना
• महाकार - विशाल आकार
• ताल - तालाब
• दर्पण - शीशा
शब्दार्थ:
• पावस-ऋतु - वर्षा ऋतु
• परिवर्तित - बदलता हुआ
• प्रकृति वेश - प्रकृति का रूप
• मेखलाकार - मंडप के आकार वाला
• अपार - जिसकी सीमा न हो
• सहस्र - हज़ारों
• दृग-सुमन - फूल रूपी आँखें
• अवलोक - देख रहा
• निज - अपना
• महाकार - विशाल आकार
• ताल - तालाब
• दर्पण - शीशा
3
गिरि का गौरव गाकर झर-झर
मद में नस-नस उत्तेजित कर
मोती की लडि़यों सी सुन्दर
झरते हैं झाग भरे निर्झर!
गिरिवर के उर से उठ-उठ कर
उच्चाकांक्षायों से तरूवर
है झांक रहे नीरव नभ पर
अनिमेष, अटल, कुछ चिंता पर।
मद में नस-नस उत्तेजित कर
मोती की लडि़यों सी सुन्दर
झरते हैं झाग भरे निर्झर!
गिरिवर के उर से उठ-उठ कर
उच्चाकांक्षायों से तरूवर
है झांक रहे नीरव नभ पर
अनिमेष, अटल, कुछ चिंता पर।
Answer
झरने पर्वत के गौरव का गुणगान करते हुए झर-झर बह रहे हैं। इन झरनों की करतल ध्वनि कवि के नस-नस में उत्साह का संचार करती है। पर्वतों पर बहने वाले झाग भरे झरने कवि को मोती की लड़ियों के समान लग रहे हैं जिससे पर्वत की सुंदरता में और निखार आ रहा है।
पर्वत के खड़े अनेक वृक्ष कवि को ऐसे लग रहे हैं मानो वे पर्वत के हृदय से उठकर उँची आकांक्षायें लिए अपलक और स्थिर होकर शांत आकाश को देख रहे हैं तथा थोड़े चिंतित मालुम हो रहे हैं।
शब्दार्थ: • गिरि - पर्वत • गौरव - सम्मान • मद - मस्ती • उत्तेजित करना - भड़काना • निर्झर - झरना • उर - हृदय • उच्चाकांक्षाओं - ऊँची आकांक्षा • तरुवर - वृक्ष • नीरव - शांत • नभ - आकाश • अनिमेष - स्थिर दृष्टि • अटल - स्थिर
पर्वत के खड़े अनेक वृक्ष कवि को ऐसे लग रहे हैं मानो वे पर्वत के हृदय से उठकर उँची आकांक्षायें लिए अपलक और स्थिर होकर शांत आकाश को देख रहे हैं तथा थोड़े चिंतित मालुम हो रहे हैं।
शब्दार्थ: • गिरि - पर्वत • गौरव - सम्मान • मद - मस्ती • उत्तेजित करना - भड़काना • निर्झर - झरना • उर - हृदय • उच्चाकांक्षाओं - ऊँची आकांक्षा • तरुवर - वृक्ष • नीरव - शांत • नभ - आकाश • अनिमेष - स्थिर दृष्टि • अटल - स्थिर
4
उड़ गया, अचानक लो, भूधर
फड़का अपार वारिद के पर!
रव-शेष रह गए हैं निर्झर!
है टूट पड़ा भू पर अंबर!
धँस गए धरा में सभय शाल!
उठ रहा धुऑं, जल गया ताल!
-यों जलद-यान में विचर-विचर
था इंद्र खेलता इंद्रजाल।
फड़का अपार वारिद के पर!
रव-शेष रह गए हैं निर्झर!
है टूट पड़ा भू पर अंबर!
धँस गए धरा में सभय शाल!
उठ रहा धुऑं, जल गया ताल!
-यों जलद-यान में विचर-विचर
था इंद्र खेलता इंद्रजाल।
Answer
पल-पल बदलते इस मौसम में अचानक बादलों के आकाश में छाने से कवि को लगता है की पर्वत जैसे गायब हो गए हों। ऐसा लग रहा है मानो आकाश धरती पर टूटकर आ गिरा हो। केवल झरनों का शोर ही सुनाई दे रहा है।
तेज बारिश के कारण धुंध सा उठता दिखाई दे रहा है जिससे ऐसा लग रहा है मानो तालाब में आग लगी हो। मौसम के ऐसे रौद्र रूप को देखकर शाल के वृक्ष डरकर धरती में धँस गए हैं ऐसे प्रतीत होते हैं। इंद्र भी अपने बादलरूपी विमान में सवार होकर इधर-उधर अपना खेल दिखाते घूम रहे हैं।
शब्दार्थ:
• भूधर - पर्वत
• वारिद - बादल
• रव-शेष - केवल शोर बाकी रह जाना
• निर्झर - झरना
• अंबर - आकाश
• भू - धरती
• सभय - डरकर
• शाल - वृक्ष
• ताल - तालाब
• जलद - बादल रूपी वाहन
• विचर-विचर - घूम-घूमकर
• इंद्रजाल - इंद्रधनुष।
तेज बारिश के कारण धुंध सा उठता दिखाई दे रहा है जिससे ऐसा लग रहा है मानो तालाब में आग लगी हो। मौसम के ऐसे रौद्र रूप को देखकर शाल के वृक्ष डरकर धरती में धँस गए हैं ऐसे प्रतीत होते हैं। इंद्र भी अपने बादलरूपी विमान में सवार होकर इधर-उधर अपना खेल दिखाते घूम रहे हैं।
शब्दार्थ:
• भूधर - पर्वत
• वारिद - बादल
• रव-शेष - केवल शोर बाकी रह जाना
• निर्झर - झरना
• अंबर - आकाश
• भू - धरती
• सभय - डरकर
• शाल - वृक्ष
• ताल - तालाब
• जलद - बादल रूपी वाहन
• विचर-विचर - घूम-घूमकर
• इंद्रजाल - इंद्रधनुष।