निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-पावस ऋतु में प्रकृति में कौन-कौन से परिवर्तन आते हैं? कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए?
Answer
पावस ऋतू में प्रकृति में निम्नलिखित परिवर्तन आते हैं-
• इस ऋतू में मौसम हर वक्त बदलता रहता है|
• विभिन्न प्रकार के रंग-बिरंगे फूल खिल जाते हैं|
• पर्वत के नीचे फैले तालाबों में पर्वतों की परछाई दिखाई देती है|
• मोती की लड़ियों की तरह बहते झरने ऐसा लगता है मानो पर्वतों का गुणगान कर रहे हों|
• पर्वत पर उगे ऊँचे वृक्ष आसमान को चिंतित होकर निहार रहे हैं|
• तेज वर्षा के कारण चारों तरफ धुंध छा जाता है|
प्रश्न अभ्यास
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निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-'मेखलाकार' शब्द का क्या अर्थ है? कवि ने इस शब्द का प्रयोग यहाँ क्यों किया है?
Answer
मेखलाकार का अर्थ है करघनी के आकार का। यहाँ इस शब्द का प्रयोग विशाल और दूर-दूर तक फैले पर्वतों की श्रृंखला के लिए किया गया है।
प्रश्न अभ्यास
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निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-'सहस्र दृग-सुमन' से क्या तात्पर्य है? कवि ने इस पद का प्रयोग किसके लिए किया होगा?
Answer
'सहस्र दृग-सुमन' कवि का तात्पर्य पहाड़ों पर खिले हजारों फूलों से है। कवि को ये हजारों फूल पहाड़ों की आँखों के सामान लग रहे हैं इसीलिए कवि ने इस पद का प्रयोग किया है।
प्रश्न अभ्यास
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निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-कवि ने तालाब की समानता किसके साथ दिखाई है और क्यों?
Answer
कवि ने तालाब की समानता दर्पण से की है क्योंकि तालाब भी दर्पण की तरह स्वच्छ और निर्मल प्रतिबिम्ब दिखा रहा है।
प्रश्न अभ्यास
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निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-पर्वत के हृदय से उठकर ऊँचे-ऊँचे वृक्ष आकाश की ओर क्यों देख रहे थे और वे किस बात को प्रतिबिंबित करते हैं?
Answer
पर्वत के हृदय से उठकर ऊँचे-ऊँचे वृक्ष आकाश की ओर एकटक चिंतित होकर ऐसे देख रहे थे जैसे वे उनकी उँचाईओं को छूना चाहते हों| वे अपनी मन की आकांक्षाओं को प्रतिबिंबित करते हैं|
प्रश्न अभ्यास
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निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-शाल के वृक्ष भयभीत होकर धरती में क्यों धँस गए?
Answer
वर्षा की भयानकता और धुंध से शाल के वृक्ष भयभीत होकर धरती में धँस गए ऐसा प्रतीत होता है।
प्रश्न अभ्यास
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निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-झरने किसके गौरव का गान कर रहे हैं? बहते हुए झरने की तुलना किससे की गई है?
Answer
झरने पर्वतों की गाथा का गान कर रहे हैं। बहते हुए झरने की तुलना मोती की लड़ियों से की गयी है।
प्रश्न अभ्यास
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निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए-है टूट पड़ा भू पर अंबर।
Answer
कवि ने इस पंक्ति में वर्षा ऋतू के मूसलाधार बारिश का वर्णन करते हुए कहा है कि बादलों से इतनी तेज वर्षा हुई कि ऐसा लगा जैसे आकाश धरती पर टूट पड़ा हो|
प्रश्न अभ्यास
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निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए-−यों जलद-यान में विचर-विचर
था इंद्र खेलता इंद्रजाल।
Answer
इन पंक्तियों में कवि ने वर्षा के देवता इंद्र बादल रूपी वाहन में घूम-घूम कर जादुई करतब दिखा रहे हैं यानी प्रकृति में पल-पल परिवर्तन ला रहे हैं|
प्रश्न अभ्यास
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निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए-गिरिवर के उर से उठ-उठ कर
उच्चाकांक्षाओं से तरुवर
हैं झांक रहे नीरव नभ पर
अनिमेष, अटल, कुछ चिंतापर।
Answer
इन पंक्तियों का में कवि ने पर्वतों पर उगे हुए वृक्षों का वर्णन करते हुए कहा है कि वे एकटक, स्थिर चिंता में डूबे मन में उच्च आकांक्षाएँ लिए हुए शांत आकाश की ओर देख रहे हैं|
प्रश्न अभ्यास
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इस कविता में मानवीकरण अलंकार का प्रयोग किया गया है? स्पष्ट कीजिए।
Answer
प्रस्तुत कविता में जगह-जगह पर मानवीकरण अलंकार का प्रयोग करके प्रकृति में जान डाल दी गई है जिससे प्रकृति सजीव प्रतीत हो रही है; जैसे − पर्वत पर उगे फूल को आँखों के द्वारा मानवकृत कर उसे सजीव प्राणी की तरह प्रस्तुत किया गया है।
"उच्चाकांक्षाओं से तरूवर
हैं झाँक रहे नीरव नभ पर"
इन पंक्तियों में तरूवर के झाँकने में मानवीकरण अलंकार है, मानो कोई व्यक्ति झाँक रहा हो।
कविता का सौंदर्य
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आपकी दृष्टि में इस कविता का सौंदर्य इनमें से किस पर निर्भर करता है −
(क) अनेकशब्दों की आवृति पर
(ख) शब्दों की चित्रमयी भाषा पर
(ग) कविता की संगीतात्मकता पर
Answer
(ख) शब्दों की चित्रमयी भाषा पर
इस कविता का सौंदर्य शब्दों की चित्रमयी भाषा पर निर्भर करता है। कवि ने कविता में चित्रात्मक शैली का प्रयोग करते हुए प्रकृति का सुन्दर रुप प्रस्तुत किया गया है।
कविता का सौंदर्य
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कवि ने चित्रात्मक शैली का प्रयोग करते हुए पावस ऋतु का सजीव चित्र अंकित किया है। ऐसे स्थलों को छाँटकर लिखिए।
Answer
कवि ने चित्रात्मक शैली का प्रयोग करते हुए पावस ऋतु का सजीव चित्र अंकित किया है। कविता में इन स्थलों पर चित्रात्मक शैली की छटा बिखरी हुई है-
1. मेखलाकार पर्वत अपार
अपने सहस्र दृग-सुमन फाड़,
अवलोक रहा है बार-बार
नीचे जल में निज महाकार
जिसके चरणों में पला ताल
दर्पण फैला है विशाल!
2. गिरिवर के उर से उठ-उठ कर
उच्चाकांक्षाओं से तरुवर
हैं झाँक रहे नीरव नभ पर
अनिमेष, अटल, कुछ चिंतापर।
कविता का सौंदर्य
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