पद (पद्य)

Revision Notes for Chapter 2 मीरा के पद Class 10 Sparsh

CBSE NCERT Revision Notes

1

हरि आप हरो जन री भीर।
द्रोपदी री लाज राखी, आप बढायो चीर।
भगत कारण रूप नरहरि, धरयो आप सरीर।
बूढतो गजराज राख्यो , काटी कुण्जर पीर।
दासी मीराँ लाल गिरधर , हरो म्हारी भीर।

Answer

भावार्थ - इस पद में मीराबाई अपने प्रिय भगवान श्रीकृष्ण से विनती करते हुए कहतीं हैं कि हे प्रभु अब आप ही अपने भक्तों की पीड़ा हरें। जिस तरह आपने अपमानित द्रोपदी की लाज उसे चीर प्रदान करके बचाई थी जब दु:शासन ने उसे निर्वस्त्र करने का प्रयास किया था। अपने प्रिय भक्त प्रह्लाद को बचाने के लिए नरसिंह रूप धारण किया था। आपने ही डुबते हुए हाथी की रक्षा की थी और उसे मगरमच्छ के मुँह से बचाया था। इस प्रकार आपने उस हाथी की पीड़ा दूर की थी। इन उदाहरणों को देकर दासी मीरा कहतीं हैं की हे गिरिधर लाल! आप मेरी पीडा भी दूर कर मुझे छुटकारा दीजिये।

शब्दार्थ:
• हरि - ईश्वर
• हरो - हरण करना
• जन - लोग,
• भीर - कष्ट
• लाज - लज्जा
• चीर - वस्त्र
• भगत - भक्त
• नरहरि - नृसिंह रूप
• गजराज - ऐरावत
• कुण्जर - हाथी,
• पीर - पीड़ा
• म्हारी - हमारी

2

स्याम म्हाने चाकर राखे जी,गिरिधरी लाल म्हाँने चाकर राखोजी।
चाकर रहस्यूँ बाग लगास्यूँ नित उठ दरसण पास्यूँ।
बिन्दरावन री कुंज गली में , गोविन्द लीला गास्यूँ।
चाकरी में दरसण पास्यूँ , सुमरण पास्यूँ खरची।
भाव भगती जागीरी पास्यूँ , तीनू बाताँ सरसी।
मोर मुगट पीताम्बर सौहे , गल वैजन्ती माला।
बिन्दरावन में भेनु चरावे , मोहन मुरली वाला।
उँचा उँचा महल बणाव , बिच बिच राखूँ बारी।
साँवरिया रा दरसण पास्यूँ , पहर कुसुम्बी साडी।
आधी रात प्रभु दरसण , दीज्यो जमनाजी रे तीरां।
मीराँ रा प्रभु गिरधर नागर , हिवडो घणो अधीराँ॥

Answer

भावार्थ - इन पदों में मीरा भगवान श्री कृष्ण से प्रार्थना करते हुए कहतीं हैं कि हे श्याम! आप मुझे अपनी दासी बना लीजिये। आपकी दासी बनकर में आपके लिए बाग–बगीचे लगाऊँगी , जिसमें आप विहार कर सकें। इसी बहाने मैं रोज आपके दर्शन कर सकूँगी। मैं वृंदावन के कुंजों और गलियों में कृष्ण की लीला के गान करुँगी। इससे उन्हें कृष्ण के नाम स्मरण का अवसर प्राप्त हो जाएगा तथा भावपूर्ण भक्ति की जागीर भी प्राप्त होगी। इस प्रकार दर्शन, स्मरण और भाव–भक्ति नामक तीनों बातें मेरे जीवन में रच–बस जाएँगी।

अगली पंक्तियों में मीरा श्री कृष्ण के रूप-सौंदर्य का वर्णन करते हुए कहती हैं कि मेरे प्रभु कृष्ण के शीश पर मोरपंखों का बना हुआ मुकुट सुशोभित है। तन पर पीले वस्त्र सुशोभित हैं। गले में वनफूलों की माला शोभायमान है। वे वृन्दावन में गायें चराते हैं और मनमोहक मुरली बजाते हैं। वृन्दावन में मेरे प्रभु का बहुत ऊँचे-ऊँचे महल हैं। वे उस महल के आँगन के बीच–बीच में सुंदर फूलों से सजी फुलवारी बनाना चाहती हैं। वे कुसुम्बी साड़ी पहनकर अपने साँवले प्रभु के दर्शन पाना चाहती हैं। मीरा भगवान कृष्ण से निवेदन करते हुए कहती हैं कि हे प्रभु! आप आधी रात के समय मुझे यमुना जी के किनारे अपने दर्शन देकर कृतार्थ करें। हे गिरिधर नागर! मेरा मन आप से मिलने के लिए बहुत व्याकुल है इसलिए दर्शन देने अवश्य आइएगा।

शब्दार्थ:
• म्हाने - हमें
• चाकर - नौकर
• राखो - रखो
• रहस्यूँ - रहकर
• दरसण - दर्शन
• पास्यूँ - पाऊँगी
• बिन्दरावन - वृंदावन
• जागीरी - संपत्ति
• धेनु - गायें
• बणावं - बनाव
• पहर - पहनना
• जमनाजी - यमुनाजी
• तीरां - किनारा
• हिवड़ो - हृदय
• घणो - ज्यादा
• अधीराँ - व्याकुल