Revision Notes for Chapter 1 दुःख का अधिकार Class 9 Sparsh
CBSE NCERT Revision Notes1
पाठ परिचय
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'दुःख का अधिकार' कहानी के लेखक यशपाल हैं। इस कहानी में लेखक ने बताया है कि दु:खी होने के लिए भी पैसे और सहूलियत होने चाहिए| मनुष्यों की पोशाकें उन्हें विभिन्न श्रेणियों में बाँट देती हैं। प्राय: पोशाक की समाज में मनुष्य का अधिकार और उसका दर्ज़ा निश्चित करती है। हम जब झुककर निचली श्रेणियों की अनुभूति को समझना चाहते हैं तो यह पोशाक ही बंधन और अड़चन बन जाती है।
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सारांश 1
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बाज़ार में फुटपाथ पर कुछ खरबूजे टोकरी में और कुछ ज़मीन पर रखकर एक अधेड़ उम्र की औरत कपड़े से मुँह छिपाए सिर घुटनों पर रखे फफक-फफककर रो रही थी। पड़ोस के लोग उसे घृणा की नज़रों से देख रहे थे और उसे बुरा-भला कहते हैं। लेखक उस स्त्री से उसके रोने का कारण जानना चाहता था, परंतु सभ्य पोशाक होने की वज़ह से वह फुटपाथ पर उसके साथ नहीं बैठ सकता था।
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सारांश 2
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एक आदमी कह रहा था कि क्या ज़माना आ गया है ! जवान लड़के को मरे एक दिन भी नहीं हुआ कि यह बेहया दुकान लगाकर बैठी है। परचून की दुकान पर बैठे लाला ने कहा कि इन लोगों को दूसरे के धर्म-ईमान की भी चिंता नहीं है। जवान बेटे के मरने पर तेरह दिन का सूतक होता है और यह आज ही खरबूजे बेचने आ गई है।
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सारांश 3
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आस-पास के दुकानदारों से पता करने पर लेखक को ज्ञात हुआ कि उस अधेड़ स्त्री का तेईस वर्ष का बेटा था। घर में बहू और पोता-पोती भी हैं। लड़का शहर के पास डेढ़ बीघा जमीन में तरकारियाँ बोता था, जिससे परिवार का पालन-पोषण होता था। वह परसों सुबह मुँहअँधेरे बेलों से खरबूज़े चुन रहा था कि उसका पैर साँप पर पड़ गया और साँप ने उसे डंस लिया। ओझा से इलाज करवाने तथा नाग देवता की पूजा करने के बाद भी अधेड़ स्त्री के पुत्र भगवाना का शरीर काला पड़ गया और वह मर गया। जो कुछ घर में था , सब उसे विदा करने में चला गया था। घर में उसकी बहू और पोते भूख से बिल-बिला रहे थे। इसलिए वह बेबस होकर खरबूज़े बेचने आई थी|
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सारांश 4
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लेखक को याद आया कि पिछले साल उसके पड़ोस में एक स्त्री अपने पुत्र की मृत्यु के शोक में अढ़ाई मास तक पलंग से उठ न सकी थी। पुत्र-वियोग में बार-बार उसे मूर्छा आ जाती थी। दो-दो डॉक्टर उसकी सेवा में उपस्थित रहते थे। लेखक सोचता चला जा रहा था कि शोक करने, ग़म मनाने के लिए भी सहूलियत चाहिए और दु:खी होने का भी एक अधिकार होता है।