दोहे (Not in Syllabus)

Revision Notes for Chapter 3 बिहारी के दोहे Class 10 Sparsh

CBSE NCERT Revision Notes

1

सोहत ओढैं पीतु पटु स्याम, सलौनैं गात।
मनौ नीलमनि-सैल पर आतपु परयौ प्रभात।।

Answer

भावार्थ - इन पंक्तियों में बिहारी ने श्रीकृष्ण के सौंदर्य का वर्णन करते हुए कहते हैं पीले वस्त्र पहने श्रीकृष्ण ऐसे सुशोभित हो रहे हैं मानो नीलमणि पर्वत पर प्रातःकालीन सूर्य की किरण पड़ रही हो।

शब्दार्थ:
• सोहत - सुंदर लगते हैं
• ओढे - पहने हुए
• पीतु पटु - पीले वस्त्र
• स्याम - साँवले श्रीकृष्ण
• गात - शरीर
• मनौ - मानो
• नीलमनि - नीलमणि
• सैल - पर्वत
• आतप - धूप
• प्रभात - प्रात:काल, सवेरा

2

कहलाने एकत बसत अहि मयूर , मृग बाघ।
जगतु तपोबन सौ कियौ दीरघ–दाघ निदाघ।।

Answer

भावार्थ - ग्रीष्म ऋतू की भयानक ताप ने इस संसार को जैसे तपोवन बना दिया है। इस भयंकर गर्मी से बचने के लिए एक-दूसरे के शत्रु साँप, मोर और सिंह साथ-साथ रहने लगे हैं। विपत्ति की इस घडी में सभी द्वेषों को भुलाकर जानवर भी तपस्वियों जैसा व्यवहार कर रहे हैं।

शब्दार्थ:
• एकत - एक होकर
• बसत - रह रहे हैं
• अहि - साँप
• मयूर - मोर
• मृग - हिरण
• जगतु - संसार
• तपोबन - तपोवन
• कियौ - करना
• दीरघ - दीर्घ
• दाघ - गर्मी

3

बतरस-लालच लाल की मुरली धरी लुकाइ।
सौंह करैं भौंहनु हँसै, दैन कहैं नटि जाइ।।

Answer

भावार्थ - गोपियों ने श्रीकृष्ण से बात करने की लालसा के कारण उनकी बाँसुरी छुपा दी हैं। वे भौंहों से मुरली ना चुराने का कसम खातीं हैं। वे कृष्ण को उनकी बाँसुरी देने से इनकार करती हैं।

शब्दार्थ:
• बतरस - बात करने का आनंद
• लाल - कृष्ण
• मुरली - बाँसुरी
• धरी - रखना
• लुकाइ - छिपा दी
• सौंह - सौगंध
• भौंहनु - भौहों से
• देन कहैं - देने के लिए कहना
• नटि जाइ - मना कर देती हैं

4

कहत, नटत, रीझत, खिझत, मिलत,खिलत, लजियात।
भरे भौन मैं करत हैं नैननु हीं सब बात।।

Answer

भावार्थ - इन पंक्तियों में बिहारी ने लोगों बीच में भी दो प्रेमी किस तरह अपने प्रेम को जताते हैं इसे दिखया है। भरे भवन में नायक अपनी नैनों से नायिका से मिलने को कहता है, जिसे नायिका मना कर देती है। उसके मना करने के इशारे पर नायक मोहित हो जाता है जिससे नायिका खीज जाती है। बाद में दोनों मिलते हैं और उनके चेहरे खिल जाते हैं तथा नायिका शरमा उठती है। ये सारी बातें वे दोनों भौंहों के इशारों और नैन द्वारा करते हैं।

शब्दार्थ:
• कहत - कहना
• नटत - इंकार करना
• रीझत - प्रसन्न होना
• खिझत - खीजना
• मिलत - मिलना
• खिलत - खिल जाना
• लजियात - शर्माना
• भौन - भवन
• नैननु - नेत्रों में

5

बैठि रही अति सघन बन , पैठि सदन–तन माँह।
देखि दुपहरी जेठ की छाँहौं चाहति छाँह।।

Answer

भावार्थ - इन पंक्तियों में बिहारी ने जेठ मास की दोपहरी का चित्रण किया है। इस समय धूप इतनी अधिक होती है कि आराम के लिए कहीं छाया भी नहीं मिलती। ऐसा लगता है मानो छाया भी छाँव को ढूँढने चली गई हो। गर्मी से बचकर विश्राम करने के लिए वह भी अपने घने भवन में चली गयी है।

शब्दार्थ:
• बैठि - बैठना
• अति - अत्यधिक
• सघन - घनी
• बन - वन
• पैठि - छिपकर
• सदन-तन - घर में
• देखि - देखकर
• दुपहरी - दोपहर
• जेठ - जेठ का महीना
• छाँहौं - छाया

6

कागद पर लिखत न बनत , कहत सँदेसु लजात।
कहिहै सबु तेरौ हियौ, मेरे हिय की बात।।

Answer

भावार्थ - इन पंक्तियों में बिहारी उस नायिका के मनोदशा को दिखा रहे हैं जिसका प्रियतम उससे दूर है। नायिका कहती है कि उसे कागज़ पे अपना सन्देश लिखा नहीं जा रहा है। किसी संदेशवाहक के द्वारा सन्देश नही भिजवा सकती क्योंकि उसे कहने में लज्जा आ रही है। इसलिए वह कहती है कि अब तुम्हीं अपने हृदय पर हाथ रख महसूस करो की मेरा हृदय में क्या है।

शब्दार्थ:
• कागद - कागज
• लिखत - लिखना
• सँदेसु - संदेश
• लजात - लज्जा लगती है
• तेरौ - तुम्हारा
• हियौ - मन

7

प्रगट भए द्विजराज – कुल सुबस बसे ब्रज आइ।
मेरे हरौ कलेस सब , केसव केसवराइ।।

Answer

भावार्थ - इन पंक्तियों में बिहारी श्रीकृष्ण से कह रहे हैं कि आप चन्द्रवंश में पैदा हुए तथा अपनी इच्छा से ब्रज आये। आप मेरे पिता के समान हैं। आप मेरे सारे कष्टों को दूर करें।

शब्दार्थ:
• प्रगट भए - प्रकट होना
• द्विजराज - चंद्रमा
• कुल - वंश
• सुबस - अपनी इच्छा से
• बसे - बसना
• आइ - आकर
• हरौ - दूर करो
• कलेस - पीड़ा
• केसव - श्रीकृष्ण
• केसवराइ - केशवराय, बिहारी के पिता का नाम

8

जपमाला , छापैं , तिलक सरै न एकौ कामु।
मन–काँचै नाचै बृथा, साँचै राँचै रामु ।।

Answer

भावार्थ - बिहारी कहते हैं कि हाथ में जपमाला थाम, तिलक लगा कर आडम्बर करने से कोई काम नही होता। मन काँच की तरह क्षणभंगुर होता है जो व्यर्थ में नाचता रहता है। इन सब दिखावा को छोड़ अगर भगवान की सच्चे मन से आराधना की जाए तभी काम बनता है।

शब्दार्थ:
• जपमाला - भगवान का नाम जपने की माला
• छापैं - अंकित करना
• तिलक - टीका
• सरै न - सिद्ध न होना
• एकौ - एक भी
• कामु - काम
• नाचै - नाचना
• काँचै - कच्चा
• बृथा - बेकार
• साँचै - सच्चा
• राँचै - प्रसन्न होना
• राम - ईश्वर