अट नहीं रही

Revision Notes for Chapter 5 अट नहीं रही Class 10 Kshitiz

CBSE NCERT Revision Notes

1

अट नहीं रही है
आभा फागुन की तन
सट नहीं रही है।
कहीं साँस लेते हो,
घर-घर भर देते हो,
उड़ने को नभ में तुम
पर-पर कर देते हो,
आँख हटाता हूँ तो
हट नहीं रही है।
पत्तों से लदी डाल
कहीं हरी, कहीं लाल,
कहीं पड़ी है उर में
मद-गंध-पुष्प-माल,
पाट-पाट शोभा-श्री
पट नहीं रही है।

Answer

प्रस्तुत कविता में कवि ने फागुन का मानवीकरण चित्र प्रस्तुत किया है। फागुन यानी फ़रवरी-मार्च के महीने में वसंत ऋतू का आगमन होता है। इस ऋतू में पुराने पत्ते झड़ जाते हैं और नए पत्ते आते हैं। रंग-बिरंगे फूलों की बहार छा जाती है और उनकी सुगंध से सारा वातावरण महक उठता है। कवि को ऐसा प्रतीत होता है मानो फागुन के सांस लेने पर सब जगह सुगंध फैल गयी हो। वे चाहकर भी अपनी आँखे इस प्राकृतिक सुंदरता से हटा नही सकते।

इस मौसम में बाग़-बगीचों, वन-उपवनों के सभी पेड़-पौधे नए-नए पत्तों से लद गए हैं, कहीं यहीं लाल रंग के हैं तो कहीं हरे और डालियाँ अनगिनत फूलों से लद गए हैं जिससे कवि को ऐसा लग रहा है जैसे प्रकृति देवी ने अपने गले रंग बिरंगे और सुगन्धित फूलों की माला पहन रखी हो। इस सर्वव्यापी सुंदरता का कवि को कहीं ओऱ-छोर नजर नही आ रहा है इसलिए कवि कहते हैं की फागुन की सुंदरता अट नही रही है।

2

कठिन शब्दों के अर्थ

Answer

• अट नहीं रही है - समा नहीं रही है
• आभा - चमक
• पर - पंख
• पाट-पाट - खाली जगह को भरना
• शोभाश्री - सुंदरता से भरपूर
• पट नहीं रही - समा नहीं रही