NCERT Solutions for Ch 3 गोल Class 6 Hindi
Book Solutions(क)
नीचे दिए गए प्रश्नों का सटीक उत्तर कौन-सा है? उसके सामने तारा (★) बनाइए-
1 “दोस्त, खेल में इतना गुस्सा अच्छा नहीं। मैंने तो अपना बदला ले ही लिया है। अगर तुम मुझे हॉकी नहीं मारते तो शायद मैं तुम्हें दो ही गोल से हराता।” मेजर ध्यानचंद की इस बात से उनके बारे में क्या पता चलता है?
• वे अत्यंत क्रोधी थे।
• वे अच्छे ढंग से बदला लेते थे।
• उन्हें हॉकी से मारने पर वे अधिक गोल करते थे।
• वे जानते थे कि खेल को सही भावना से खेलना चाहिए।
2 लोगों ने मेजर ध्यानचंद को ‘हॉकी का जादूगर’ कहना क्यों शुरू कर दिया?
• उनके हॉकी खेलने के विशेष कौशल के कारण
• उनकी हॉकी स्टिक की अनोखी विशेषताओं के कारण
• हॉकी के लिए उनके विशेष लगाव के कारण
• उनकी खेल भावना के कारण
Answer
1 वे जानते थे कि खेल को सही भावना से खेलना चाहिए। (★)2 उनके हॉकी खेलने के विशेष कौशल के कारण (★)
(ख)
Answer
मेजर ध्यानचंद की सफलता का मूल उनकी उत्कृष्ट खेल भावना थी। यह कई उदाहरणों से स्पष्ट होता है:• उन्होंने हिंसा के बदले गोल करके बदला लिया।
• वे मानते थे कि खेल में गुस्सा अच्छा नहीं।
• उन्होंने सफलता के मंत्र में खेल भावना को शामिल किया।
•वे अक्सर गोल का श्रेय साथी खिलाड़ियों को देते थे।
इसी खेल भावना के कारण लोगों ने उन्हें ‘हॉकी का जादूगर’ कहा और वे दुनिया भर के खेल प्रेमियों के चहेते बने। उनकी यह भावना उनके कौशल और व्यक्तित्व का अभिन्न अंग थी।
मिलान करें

Answer
1. → 22. → 4
3. → 5
4. → 6
5. → 1
6. → 3
पंक्तियों
पाठ में से चुनकर कुछ पंक्तियाँ नीचे दी गई हैं। इन्हें ध्यान से पढ़िए और इन पर विचार कीजिए ।
आपको इनका क्या अर्थ समझ में आया? अपने विचार कक्षा में अपने समूह में साझा कीजिए और अपनी लेखन पुस्तिका में लिखिए।
(क) “बुरा काम करने वाला आदमी हर समय इस बात से डरता रहता है कि उसके साथ भी बुराई की जाएगी।”
Answer
उपरोक्त पंक्ति एक गहन जीवन सत्य को दर्शाती है। यह उस घटना से उपजी है जब एक प्रतिद्वंद्वी खिलाड़ी ने गुस्से में आकर ध्यानचंद पर हॉकी से वार किया। जब ध्यानचंद ने बदला लेने की बात कही, तो वह खिलाड़ी भयभीत हो गया। परंतु ध्यानचंद ने अपनी श्रेष्ठ खेल भावना का परिचय देते हुए हिंसा के बदले छह गोल करके अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया।इस घटना से न केवल खेल में, बल्कि जीवन में भी नैतिक मूल्यों और क्षमाशीलता के महत्व का पता चलता है। यह दर्शाता है कि सच्चा खिलाड़ी यह है जो अपने कौशल से जीतता है, न कि दूसरों को नुकसान पहुंचाकर।
ध्यानचंद की यह क्रिया उनकी महानता और खेल के प्रति उनके समर्पण को प्रदर्शित करती है, जो उन्हें ‘हॉकी का जादूगर’ बनने में सहायक रही।
पंक्तियों
पाठ में से चुनकर कुछ पंक्तियाँ नीचे दी गई हैं। इन्हें ध्यान से पढ़िए और इन पर विचार कीजिए ।
आपको इनका क्या अर्थ समझ में आया? अपने विचार कक्षा में अपने समूह में साझा कीजिए और अपनी लेखन पुस्तिका में लिखिए।
(ख) “मेरी तो हमेशा यह कोशिश रहती कि मैं गेंद को गोल के पास ले जाकर अपने किसी साथी खिलाड़ी को दे दूँ ताकि उसे गोल करने का श्रेय मिल जाए। अपनी इसी खेल भावना के कारण मैंने दुनिया के खेल प्रेमियों का दिल जीत लिया।”
Answer
मेजर ध्यानचंद की असाधारण खेल भावना और नेतृत्व गुण उनके इस कथन में स्पष्ट झलकते हैं। वे अपने व्यक्तिगत प्रदर्शन से ऊपर उठकर टीम के हित को सर्वोपरि रखते थे। उनकी यह रणनीति थी कि वे गेंद को गोल के निकट ले जाकर अपने साथी खिलाड़ियों को गोल करने का अवसर प्रदान करें। इस नि:स्वार्थ दृष्टिकोण से न केवल टीम का मनोबल बढ़ता था, बल्कि प्रतिद्वंद्वियों को भी भ्रमित करने में मदद मिलती थी।एक कुशल नेता की भांति, वे अपनी टीम के सदस्यों को आगे बढ़ने और अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका देते थे। यह रवैया खेल के सच्चे मर्म, टीम की सफलता और खेल के आनंद को प्रतिबिंबित करता है। उनकी इस विनम्र और टीम केंद्रित दृष्टिकोण ने उन्हें विश्व भर के खेल प्रेमियों का चहेता बना दिया, जो उन्हें हॉकी का जादूगर' कहलाने में एक महत्वपूर्ण कारक सिद्ध हुआ। ध्यानचंद का यह व्यवहार न केवल उनके खेल कौशल को, बल्कि उनके महान व्यक्तित्व को भी प्रदर्शित करता है, जो आज भी युवा खिलाड़ियों के लिए एक प्रेरणास्रोत है।
सोच-विचार
संस्मरण को एक बार फिर से पढ़िए और निम्नलिखित के बारे में पता लगाकर अपनी लेखन पुस्तिका में लिखिए-
(क) ध्यानचंद की सफलता का क्या रहस्य था?
Answer
उत्तर (1)
ध्यानचंद की सफलता का रहस्य था उनकी खेल के प्रति सच्ची लगन, साधना और खेल भावना। उन्होंने जब हॉकी खेलना शुरू किया तो वे बिल्कुल नौसिखिए थे। धीरे-धीरे अभ्यास से उनके खेल में निखार आता गया और उनको तरक्की भी मिलती गई। हॉकी सीखने के लिए कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी वे निरंतर प्रयासरत रहे। 1936 में वे बर्लिन ओलंपिक टीम के कप्तान बने और अपने हॉकी खेलने के ढंग से लोगों को इतना प्रभावित किया कि ‘हॉकी के जादूगर’ कहलाए।
उत्तर (2)
मेजर ध्यानचंद की सफलता का रहस्य उनके अनूठे गुणों और दृष्टिकोण में निहित था।
• लग्न और समर्पण: उन्होंने खेल के प्रति पूर्ण समर्पण दिखाया
• निरंतर अभ्यास: वे लगातार अपने कौशल को निखारते रहते थे।
• टीम भावना: व्यक्तिगत प्रसिद्धि से ऊपर उठकर टीम के हित को प्राथमिकता देते थे।
• नेतृत्व कौशलः साधी खिलाड़ियों को गोल करने के अवसर देकर टीम का मनोबल बढ़ाते थे।
• राष्ट्रीय भावना: उनका मानना था कि जीत हार व्यक्तिगत नहीं, बल्कि देश की होती है।
• विनम्रता: अपनी प्रसिद्धि के बावजूद विनम्र रहे।
• सकारात्मक दृष्टिकोण: प्रतिकूल परिस्थितियों में भी सकारात्मक रहते थे।
• क्षमाशीलता: प्रतिद्वंद्वियों के साथ भी सद्भाव रखते थे।
• नैतिक मूल्य: खेल में नैतिकता और खेल भावना को महत्व देते थे।
• रणनीतिक सोच: खेल में कुशल रणनीति का प्रयोग करते थे।
• अनुशासन: सैन्य पृष्ठभूमि के कारण कड़े अनुशासन का पालन करते थे।
• प्रेरणादायक व्यक्तित्व: अपने व्यवहार से दूसरों को प्रेरित करते थे।
इन गुणों के समन्वय ने ध्यानचंद को न केवल एक महान खिलाड़ी बल्कि ‘हॉकी का जादूगर’ बना दिया।
सोच-विचार
संस्मरण को एक बार फिर से पढ़िए और निम्नलिखित के बारे में पता लगाकर अपनी लेखन पुस्तिका में लिखिए-
(ख) किन बातों से ऐसा लगता है कि ध्यानचंद स्वयं से पहले दूसरों को रखते थे?
Answer
उत्तर (1)
ध्यानचंद के व्यवहार और दृष्टिकोण से यह स्पष्ट होता है कि वे स्वयं से पहले दूसरों को महत्व देते थे।
• टीम के लिए गोल: “मेरी तो हमेशा यह कोशिश रहती कि मैं गेंद को गोल के पास ले जाकर अपने किसी साथी खिलाड़ी को दे दूँ ताकि उसे गोल करने का श्रेय मिल जाए ।“
• राष्ट्रीय भावना: “खेलते समय मैं हमेशा इस बात का ध्यान रखता था कि हार या जीत मेरी नहीं, बल्कि पूरे देश की है।“
• क्षमाशीलता: जब एक खिलाड़ी ने उन्हें चोट पहुंचाई, तो उन्होंने बदले में उसे चोट नहीं पहुंचाई, बल्कि खेल से जवाब दिया।
• साथी खिलाड़ियों का मनोबल: वे अपने साथी खिलाड़ियों को गोल करने का मौका देकर उनका मनोबल बढ़ाते थे।
• विनम्रता: अपनी प्रसिद्धि के बावजूद, वे हमेशा टीम को श्रेय देना चाहते थे।
उत्तर (2)
यह कथन सत्य है कि ध्यानचंद स्वयं से पहले दूसरों को रखते थे। वे गेंद को अपने साथियों के पास ले जाते थे ताकि वे गोल कर सकें। जीत का श्रेय केवल स्वयं न लेकर टीम को देना चाहते थे। दूसरी ओर इस बात का भी सदा ध्यान रखते थे कि हार या जीत उनकी नहीं पूरे देश की हो। जो यह दर्शाता है कि वे सच्चे देशप्रेमी थे।
संस्मरण की
“उन दिनों में मैं, पंजाब रेजिमेंट की ओर से खेला करता था । ”
इस वाक्य को पढ़कर ऐसा लगता है मानो लेखक आपसे यानी पाठक से अपनी यादों को साझा कर रहा है। ध्यान देंगे तो इस पाठ में ऐसी और भी अनेक विशेष बातें आपको दिखाई देंगी। इस पाठ को एक बार फिर से पढ़िए ।
(क) अपने-अपने समूह में मिलकर इस संस्मरण की विशेषताओं की सूची बनाइए।
(ख) अपने समूह की सूची को कक्षा में सबके साथ साझा कीजिए।
Answer
(क) गोल संस्मरण की विशेषताएं-• प्रेरणादायक कहानी: यह संस्मरण मेजर ध्यानचंद के जीवन से एक प्रेरणादायक घटना बताता है।
• खेल भावना का महत्व: इसमें खेल में अच्छे व्यवहार और सही भावना का महत्व दिखाया गया है।
• व्यक्तिगत अनुभव: ध्यानचंद अपने निजी अनुभवों को साझा करते हैं।
• सरल भाषा: कहानी सरल और समझने योग्य भाषा में लिखी गई है।
• मूल्य शिक्षा: इसमें क्षमा, धैर्य और टीम भावना जैसे मूल्यों की शिक्षा दी गई है।
• ऐतिहासिक जानकारी: इसमें ओलंपिक और भारतीय हॉकी के इतिहास की झलक मिलती है।
• आत्मकथात्मक शैली: ध्यानचंद पहले व्यक्ति के दृष्टिकोण से कहानी सुनाते हैं।
• संक्षिप्त और रोचक: कहानी छोटी पर दिलचस्प है, जो बच्चों के लिए उपयुक्त है।
शब्दों केज
Answer
(क) धीरे-धीरे(ख) बार-बार
(ग) जल्दी-जल्दी
(ङ) कभी-कभी
(घ) देखते-देखते
शब्दों के
Answer
(क) ज्यों-ज्यों नदी का जल बढ़ता गया, त्यों-त्यों लोग गाँव छोड़कर जाते रहे।
(ख) ध्यानचंद के लिए हार-जीत से ज्यादा महत्वपूर्ण था खेल भावना को बनाये रखना।
(ग) मेजर तिवारी बार-बार मुझे हॉकी खेलने के लिए कहते।
(घ) जब-जब देश पर विपदा आती है, तब-तब सरकार सहायता अवश्य करती है।
(ङ) ध्यानचंद झटपट-झटपट गोल करके विरोधी टीम को हैरान क्र देते थे।
शब्दों के
(ग) “हार या जीत मेरी नहीं, बल्कि पूरे देश की है।”
“आज मैं जहाँ भी जाता हूँ बच्चे व बूढ़े मुझे घेर लेते हैं।”
इन वाक्यों में जिन शब्दों के नीचे रेखा खिंची है, उन्हें ध्यान से पढ़िए। हम इन शब्दों को योजक की सहायता से भी लिख सकते हैं, जैसे- हार-जीत, बच्चे-बूढ़े आदि ।
आप नीचे दिए गए शब्दों को योजक की सहायता से लिखिए—
Answer
• अच्छा या बुराउत्तर
अच्छा-बुरा
• छोटा या बड़ा
उत्तर
छोटा-बड़ा
• अमीर और गरीब
उत्तर
अमीर-गरीब
• उत्तर और दक्षिण
उत्तर
उत्तर – दक्षिण
• गुरु और शिष्य
उत्तर
गुरु-शिष्य
• अमृत या विष
उत्तर
अमृत-विष
बात पर बल
“मैंने तो अपना बदला ले ही लिया है। ”
“मैंने तो अपना बदला ले लिया है। ”
इन दोनों वाक्यों में क्या अंतर है? ध्यान दीजिए और बताइए। सही पहचाना ! दूसरे वाक्य में एक शब्द कम है। उस एक शब्द के न होने से वाक्य के अर्थ में भी थोड़ा अंतर आ गया है।
हम अपनी बात पर बल देने के लिए कुछ विशेष शब्दों का प्रयोग करते हैं जैसे— ‘ही’ , ‘भी’ , ‘तो’ आदि। पाठ में से इन शब्दों वाले वाक्यों को चुनकर लिखिए। ध्यान दीजिए कि यदि उन वाक्यों में ये शब्द न होते तो उनके अर्थ पर इसका क्या प्रभाव पड़ता।
Answer
बात पर बल देने वाले शब्द ‘निपात’ कहलाते हैं।
(क) मेरे इतना कहते ही खिलाड़ी घबरा गया।
(ख) अब हर समय मुझे ही देखते रहना ।
(ग) अगर तुम मुझे हॉकी नहीं मारते तो शायद मैं तुम्हें दो ही गोल से हराता ।
(घ) तो देखा आपने मेरा बदला लेने का ढंग ।
(ङ) उसके साथ भी बुराई की जाएगी।
(च) मैं जहाँ भी जाता हूँ बच्चे व बूढ़े मुझे घेर लेते हैं।
(छ) लगन, साधना और खेल भावना ही सफलता का सबसे बड़ा मूलमंत्र है।
यदि वाक्यों में ‘ही’ ‘भी’ ‘तो’ आदि शब्दों का प्रयोग न किया जाए तो ये सामान्य वाक्य का रूप ले लेते हैं और ये शब्द वाक्य को प्रभावी बनाते हैं।
आपकी बात
(क) ध्यानचंद के स्थान पर आप होते तो क्या आप बदला लेते? यदि हाँ, तो बताइए कि आप बदला किस प्रकार लेते?
Answer
यदि मैं ध्यानचंद के स्थान पर होता तो मुझे अपने प्रतिद्वंदी पर क्रोध तो आता और पलटकर बदला लेने की इच्छा भी होती। एक खिलाड़ी होने के नाते स्वयं पर संयम रखता क्योंकि हार- जीत होना खेल का नियम होता है।
मैं भी ऐसा ही करता
1. शांत रहकर अपने खेल पर ध्यान देता।
2. टीम के साथ मिलकर अच्छा प्रदर्शन करता ।
3. ज्यादा गोल करके अपनी योग्यता साबित करता।
4. खेल के बाद उस खिलाड़ी से दोस्ती से बात करता।
5. उसे समझाता कि गुस्सा करना अच्छा नहीं होता।
इस तरह मैं बिना किसी को चोट पहुंचाए अपनी श्रेष्ठता दिखा सकता था। यह तरीका खेल भावना के अनुकूल होता और दूसरों के लिए एक अच्छा उदाहरण बन सकता था।
आपकी बात
Answer
मुझे फुटबॉल, एथलेटिक्स, और भाला फेंक खेल बहुत पसंद हैं। इन खेलों में सुनील छेत्री, हिमा दास और नीरज चोपड़ा मेरे पसंदीदा खिलाड़ी हैं।
सुनील छेत्री:
• वे भारतीय फुटबॉल टीम के कप्तान हैं।
• उन्होंने कड़ी मेहनत से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नाम कमाया है।
• वे युवा खिलाड़ियों के लिए प्रेरणा हैं।
हिमा दास:
• वे 400 मीटर दौड़ की चैंपियन हैं।
• उन्होंने छोटी उम्र में ही कई पदक जीते हैं।
• वे असम से आकर पूरे देश का नाम रोशन कर रही हैं।
नीरज चोपड़ा
• उन्होंने 2020 के टोक्यो ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीता, जो एथलेटिक्स में भारत का पहला ओलंपिक स्वर्ण पदक है।
• वे दिखाते हैं कि कड़ी मेहनत और समर्पण से कोई भी अपने लक्ष्य को पा सकता है।
• उन्होंने भारत को एथलेटिक्स में नई पहचान दिलाई
• वे युवाओं को खेलों में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं।
मुझे ये खिलाड़ी इसलिए पसंद हैं क्योंकि वे अपने लक्ष्य के लिए कड़ी मेहनत करते हैं और देश का नाम ऊंचा करते हैं। वे हमें सिखाते हैं कि अगर हम अपने सपनों के लिए मेहनत करें, तो हम भी सफल हो सकते हैं।
समाचार-पत्
(क) क्या आप समाचार-पत्र पढ़ते हैं? समाचार-पत्रों में प्रतिदिन खेल के समाचारों का एक पृष्ठ प्रकाशित होता है। अपने घर या पुस्तकालय से पिछले सप्ताह के समाचार पत्रों को देखिए। अपनी पसंद का एक खेल-समाचार अपनी लेखन पुस्तिका में लिखिए।
(ख) मान लीजिए कि आप एक खेल संवाददाता हैं और किसी खेल का आँखों देखा प्रसारण कर रहे हैं। अपने समूह के साथ मिलकर कक्षा में उस खेल का आँखों देखा हाल प्रस्तुत कीजिए। (संकेत—इस कार्य में आप आकाशवाणी या दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले खेल-प्रसारणों की कमेंटरी की शैली का उपयोग कर सकते हैं। बारी-बारी से प्रत्येक समूह कक्षा में सामने डेस्क या कुर्सियों पर बैठ जाएगा और पाँच मिनट के लिए किसी खेल के सजीव प्रसारण की कमेंटरी का अभिनय करेगा।)
Answer
मनोरंजन एवं बौद्धिक भाग विद्यार्थियों के स्वयं करने योग्य ।डायरी का प
क्या आप भी अपने मन की बातों और विचारों को लिखना चाहते हैं? यदि हाँ, तो आज से ही प्रारंभ कर दीजिए—
Answer
• आप जहाँ लिखेंगे, वह माध्यम चुन लीजिए। आप किसी लेखन – पुस्तिका में या ऑनलाइन मंचों पर लिख सकते हैं।• आप प्रतिदिन, कुछ दिनों में एक बार या जब कुछ लिखने का मन करे तब लिख सकते हैं।
• शब्दों या वाक्यों की कोई सीमा नहीं है चाहे दो वाक्य हों या दो पृष्ठ । आप जो मन में आए उसे उचित और शालीन शब्दों में लिख सकते हैं।
आज की पहेल
Answer
नीली स्कर्ट पहने हुए लड़की गोल करेगी।झरोखे से
Answer
इस खेल का नाम है — डाँडी या गोथा।डाँडी या गोथा
यह भील-भिलाला बच्चों का खेल है। ‘डाँडी’ और ‘गोथा’ शब्द का अर्थ एक ही है- खेलने की हाथ-लकड़ी। देखा जाए तो यह खेल काफी-कुछ हमारे राष्ट्रीय खेल हॉकी जैसा है। अंतर बस इतना है कि हॉकी में गोल करने के लिए गोलपोस्ट होते हैं, जबकि इस खेल में ऐसा कोई निर्धारण नहीं है। दूसरा अंतर यह है कि भील-भिलाला बच्चों की यह गेंद, हॉकी की अपेक्षा एकदम साधारण होती है। यह बाँस की बनी होती है।
खेल सामग्री
1. बाँस के गुट्टे की गेंद जिसे ‘दुईत’ कहते हैं।
2. ‘गोथा’ यानी अंग्रेजी के ‘L’ अक्षर की तरह नीचे से मुड़ी हुई बाँस की डंडियाँ।
3. राख से खेल के मैदान में सीमांकन करना और घेरे के भीतर एक छोटा वृत्त बनाना।
कैसे खेलें
1. वैसे तो इसे चाहे जितने खिलाड़ी खेल सकते हैं, मगर दोनों दलों में कम से कम दो-दो खिलाड़ी हों।
2. टॉस करना। टॉस जीतने वाला दल खेल प्रारंभ करेगा।
3. गेंद को छोटे घेरे या वृत्त में रखना। हमला करने वाले दल के खिलाड़ी खेल प्रारंभ होते ही बॉल को पीटते हुए बचाव दल के दायरे में दूर तक ले जाना चाहते हैं।
4. दोनों दलों के एक-एक खिलाड़ी अपनी-अपनी तरफ की ‘डी’ में खड़े रहते हैं। वे प्रयास करते हैं कि गेंद रेखा पार न करे।
5. खिलाड़ी डाँडी या गोथा के दोनों ओर से खेल सकते हैं, जबकि ऐसी सुविधा हॉकी के खेल में नहीं है।
6. बाकी सारा खेल हॉकी के खेल के समान होता है। प्रश्न उठता है कि इस खेल में गोलपोस्ट नहीं होते यानी गोल करने का मामला नहीं बनता, तो हार-जीत क निर्णय कैसे किया जाता है? उत्तर यह है कि जो दल गेंद को अधिक से अधिक बार विरोधी के पाले में ढकेलता है, वही बलवान है और इसलिए विजयी भी।
7. खेल के दो विशेष नियम हैं। पहला, गेंद को शरीर के किसी भी अंग से न छूना, न रोकना। दूसरा, गेंद को हवाई शॉट न मारना और न उसे हवा में शॉट खेलकर साथी खिलाड़ी को पास देना। बाकी लकड़ी से आप गेंद को रोक सकते हैं या हिट कर सकते हैं। आगे जैसा कि बता चुके हैं, जो दल बीच की रेखा को पार करके विरोधी दल के क्षेत्र में अधिक से अधिक दबाव या प्रवेश बनाए रखता है, वह विजयी होता है।
विशेष—यह खेल होली का त्योहार आने के कुछ दिन पहले से खेला जाता है। अंत में जिस दिन होलिका जलाई जाती है, उस दिन ये दुइत और गोथे (गेंद और डंडे) आग में डाल दिए जाते हैं।
साझी समझ
Answer
खेल - कबड्डी और उसके नियम
खिलाड़ी:
• दो टीमें, प्रत्येक में 7 खिलाड़ी।
• 5 अतिरिक्त खिलाड़ी बदलने के लिए।
मैदान:
• आयताकार मैदान, बीच में एक रेखा ।
• हर टीम का अपना आधा हिस्सा।
समय:
• दोहा, प्रत्येक 20 मिनट का ।
• बीच में 5 मिनट का विश्राम।
खेल का तरीका:
• एक टीम से एक ‘रेडर’ दूसरी टीम के क्षेत्र में जाता है।
• रेडर को “कबड्डी-कबड्डी” बोलते रहना होता है।
• रेडर को विरोधी खिलाड़ियों को छूना है।
• विरोधी टीम रेडर को पकड़ने की कोशिश करती है।
अंकः
• रेडर छूकर वापस आए- 1 अंक प्रति छुए खिलाड़ी।
• रेडर पकड़ा गया- विरोधी टीम को 1 अंक।
• सभी विरोधी खिलाड़ी आउट- 2 अतिरिक्त अंक
आउट होना:
• रेडर बिना छुए या पकड़े जाए।
• खिलाड़ी मैदान से बाहर जाए।
• सांस रोकना बंद करे।
जीत:
• अधिक अंक वाली टीम जीतती है।