उपभोक्तावाद की संस्कृति

Revision Notes for Chapter 3 उपभोक्तावाद की संस्कृति Class 9 Kshitiz

CBSE NCERT Revision Notes

1

सारांश 1

Answer

This image has an empty alt attribute; its file name is upbhoktavad-ki-sanskriti-2.jpg

लेखक ने इस पाठ में उपभोक्तावाद के बारे में बताया है। उनके अनुसार सबकुछ बदल रहा है। नई जीवनशैली आम व्यक्ति पर हावी होती जा रही है। अब उपभोग-भोग ही सुख बन गया है। बाजार विलासिता की सामग्रियों से भरा पड़ा है।

2

सारांश 2

Answer

This image has an empty alt attribute; its file name is upbhoktavad-ki-sanskriti-1-1.jpg

एक से बढ़कर एक टूथपेस्ट बाजार में उपलब्ध हैं। कोई दाँतो को मोतियों जैसा बनाने वाले, कोई मसूढ़ों को मजबूत रखता है तो कोई वनस्पति और खनिज तत्वों द्वारा निर्मित है। उन्ही के अनुसार रंग और सफाई की क्षमता वाले ब्रश भी बाजार में मौजूद हैं। पल भर में मुह की दुर्गन्ध दूर करने वाले माउथवाश भी उपस्थित है। सौंदर्य-प्रासधन में तो हर माह नए उत्पाद जुड़ जाते हैं। अगर एक साबुन को ही देखे तो ऐसे साबुन उपलब्ध हैं जो तरोताजा कर दे, शुद्ध-गंगाजल से निर्मित और कोई तो सिने-स्टार्स की खूबसूरती का राज भी है। संभ्रांत महिलओं की ड्रेसिंग टेबल पर तीस-तीस हजार के आराम से मिल जाती है।

3

सारांश 3

Answer

This image has an empty alt attribute; its file name is upbhoktavad-ki-sanskriti-2-1.jpg

वस्तुओं और परिधानों की दुनिया से शहरों में जगह-जगह बुटीक खुल गए हैं। अलग-अलग ब्रांडो के नई डिज़ाइन के कपडे आ गए हैं। घड़ियां अब सिर्फ समय देखने के लिए नहीं  बल्कि प्रतिष्ठा को बढ़ाने के रूप में पहनी जाती हैं। संगीत आये या न पर म्यूजिक सिस्टम बड़ा होना चाहिए भले ही बजाने न आये। कंप्यूटर को दिखावे के लिए ख़रीदा जा रहा है। प्रतिष्ठा के नाम पर शादी-विवाह पांच सितारा होटलों में बुक होते हैं। इलाज करवाने के लिए पांच सितारा हॉस्पिटलों में जाया जाता है। शिक्षा के लिए पांच सितारा स्कूल मौजूद हैं कुछ दिन में कॉलेज और यूनिवर्सिटी भी बन जाएंगे। अमेरिका और यूरोप में मरने के पहले ही अंतिम संस्कार के बाद का विश्राम का प्रबंध कर लिया जाता है। कब्र पर फूल-फव्वारे, संगीत आदि का इंतज़ाम कर लिया जाता है। यह भारत में तो नही होता पर भविष्य में होने लग जाएगा।

4

सारांश 4

Answer

This image has an empty alt attribute; its file name is upbhoktavad-ki-sanskriti-3-1.jpg

हमारी परम्पराओं का अवमूल्यन हुआ है, आस्थाओं का क्षरण हुआ है। हमारी मानसिकता में गिरावट आ रही है। हमारी सिमित संसाधनों का घोर अप्व्यय हो रहा है। आलू चिप्स और पिज़्ज़ा खाकर कोई भला स्वस्थ कैसे रह सकता है? सामाजिक सरोकार में कमी आ रही है। व्यक्तिगत केन्द्रता बढ़ रही है और स्वार्थ परमार्थ पर हावी हो रहा है। गांधीजी के अनुसार हमें अपने आदर्शों पर टिके रहते हुए स्वस्थ बदलावों को अपनाना है। उपभोक्ता संस्कृति भविष्य के लिए एक बड़ा खतरा साबित होने वाली है।