साखियाँ एवं सबद

Revision Notes for Chapter 9 साखियाँ एवं सबद Class 9 Kshitiz

CBSE NCERT Revision Notes

1

मानसरोवर सुभर जल, हंसा केलि कराहिं।
मुकताफल  मुकता चुगैं, अब उड़ि अनत न जाहिं।1।

Answer

अर्थ - इस पंक्ति में कबीर ने व्यक्तियों की तुलना हंसों से करते हुए कहा है की जिस तरह हंस मानसरोवर में खेलते हैं और मोती चुगते हैं, वे उसे छोड़ कहीं नही जाना चाहते ठीक उसी तरह मनुष्य भी जीवन के मायाजाल में बंध जाता है और इसे ही सच्चाई समझने लगता है।

शब्दार्थ:
• मानसरोवर - हिमालय स्थित पवित्र सरोवर
• सुभर - अच्छी तरह भरा हुआ
• केलि - क्रीड़ा
• मुकताफल - मोती
• अनत - अन्यत्र

2

प्रेमी ढूंढ़ते मैं फिरौं, प्रेमी मिले न कोइ।
प्रेमी कौं प्रेमी मिलै, सब विष अमृत होइ।2।

Answer

अर्थ - यहां कबीर यह कहते हैं की प्रेमी यानी ईश्वर को ढूंढना बहुत मुश्किल है। वे उसे ढूंढ़ते फिर रहे हैं परन्तु वह उन्हें मिल नही रहा है। प्रेमी रूपी ईश्वर मिल जाने पर उनका सारा विष यानी कष्ट अमृत यानी सुख में बदल जाएगा।

शब्दार्थ:
• प्रेमी - प्रभु भक्त
• फिरौं - फिरा
• विष - जहर

3

हस्ती चढ़िए ज्ञान कौ, सहज दुलीचा डारि।
स्वान रूप संसार है, भूँकन दे झक मारि।3।

Answer

अर्थ - यहां कबीर कहना चाहते हैं की व्यक्ति को ज्ञान रूपी हाथी की सवारी करनी चाहिए और सहज साधना रूपी गलीचा बिछाना चाहिए। संसार की तुलना कुत्तों से की गयी है जो आपके ऊपर भौंकते रहेंगे जिसे अनदेखा कर चलते रहना चाहिए। एक दिन वे स्वयं ही झक मारकर चुप हो जायेंगे।

शब्दार्थ:
• हस्ती - हाथी
• सहज - सरल
• दुलीचा - छोटा आसन
• स्वान - कुत्ता
• मूंकन - भौंकना
• झक मारि - समय बरबाद करना

4

पखापखी के कारनै, सब जग रहा भुलान।
निरपख होइ के हरि भजै, सोई संत सुजान।4।

Answer

अर्थ - संत कबीर कहते हैं पक्ष-विपक्ष के कारण सारा संसार आपस में लड़ रहा है और भूल-भुलैया में पड़कर प्रभु को भूल गया है। जो ब्यक्ति इन सब झंझटों में पड़े बिना निष्पक्ष होकर प्रभु भजन में लगा है वही सही अर्थों में मनुष्य है।

शब्दार्थ:
• पखापखी - पक्ष और विपक्ष
• कारनै - कारण
• भुलान - भूला हुआ
• निरपख - निष्पक्ष
• सोई - वही
• सुजान - ज्ञानी

5

हिन्दू मूआ राम कहि, मुसलमान खुदाई।
कहै कबीर सो जीवता, दुहुँ के निकटि न जाइ।5।

Answer

अर्थ - कबीर ने कहा है की हिन्दू राम-राम का भजन और मुसलमान खुदा-खुदा कहते मर जाते हैं, उन्हें कुछ हासिल नही होता। असल में वह व्यक्ति ही जीवित के समान है जो इन दोनों ही बातों से अपने आप को अलग रखता है।

शब्दार्थ:
• मूआ - मर गया
• कहि - कहकर
• सो जीवता - वही जीवित है
• दुहुँ के - दोनों के

6

काबा फिरि कासी भया, रामहिं भया रहीम।
मोट चुन मैदा भया, बैठी कबीरा जीम।6।

Answer

अर्थ - कबीर कहते हैं की आप या तो काबा जाएँ या काशी, राम भंजे या रहीम दोनों का अर्थ समान ही है। जिस प्रकार गेहूं को पीसने से वह आटा बन जाता है तथा बारीक पीसने से मैदा परन्तु दोनों ही खाने के प्रयोग में ही  लाए जाते हैं। इसलिए दोनों ही अर्थों में आप प्रभु के ही दर्शन करेंगें।

शब्दार्थ:
• काबा - मक्का-मदीना
• भया - हुआ
• मोट चून - मोटा आटा
• जीम - भोजन करो

7

उच्चे कुल का जनमिया, जे करनी उच्च न होइ।
सुबरन कलस सुरा भरा, साधू निंदा सोई।7।

Answer

अर्थ - इन पंक्तियों में कबीर कहते हैं की केवल उच्च कुल में जन्म लेने कुछ नही हो जाता, उसके कर्म ज्यादा मायने रखते हैं। अगर वह व्यक्ति बुरे कार्य करता है तो उसका कुल अनदेखा कर दिया जाता है, ठीक उसी प्रकार जिस तरह सोने के कलश में रखी शराब भी शराब ही कहलाती है।

शब्दार्थ:
• जनमिया - जन्म लेकर
• करनी - कर्म, काम
• सुबरन - सोना
• सुरा - शराब
• साधू - सज्जन

8

मोको कहाँ ढूँढ़े बंदे , मैं तो तेरे पास में ।
ना मैं देवल ना मैं मसजिद, ना काबे कैलास में ।
ना तो कौने क्रिया - कर्म में, नहीं योग वैराग में ।
खोजी होय तो तुरतै मिलिहौं, पलभर की तलास में ।
कहैं कबीर सुनो भई साधो, सब स्वासों की स्वास में॥

Answer

अर्थ - इन पंक्तियों में कबीरदास जी ने बताया है मनुष्य ईश्वर में चहुंओर भटकता रहता है। कभी वह मंदिर जाता है तो कभी मस्जिद, कभी काबा भ्रमण है तो कभी कैलाश। वह इश्वार को पाने के लिए पूजा-पाठ, तंत्र-मंत्र करता है जिसे कबीर ने महज आडम्बर बताया है। इसी प्रकार वह अपने जीवन का सारा समय गुजार देता है जबकि ईश्वर सबकी साँसों में, हृदय में, आत्मा में मौजूद है, वह पलभर में मिल जा सकता है चूँकि वह कण-कण में व्याप्त है।

शब्दार्थ:
• मोकों - मुझे
• देवल - देवालय,
• कैलास - हिन्दुओं का पवित्र तीर्थ
• क्रिया-कर्म - कर्मकाण्ड
• योग बैराग - योग-साधना एवं वैराग्य
• खोजी - खोजने वाला
• तालास - तलाश
• स्वाँस - श्वास

9

संतौं भाई आई ग्याँन की आँधी रे।
भ्रम की टाटी सबै उड़ानी, माया रहै न बाँधी॥
हिति चित्त की द्वै थूँनी गिराँनी, मोह बलिण्डा तूटा।
त्रिस्नाँ छाँनि परि घर ऊपरि, कुबुधि का भाण्डा फूटा॥
जोग जुगति करि संतौं बाँधी, निरचू चुवै न पाँणी|
कूड़ कपट काया का निकस्या, हरि की गति जब जाँणी॥
आँधी पीछै जो जल बूठ , प्रेम हरि जन भींनाँ।
कहै कबीर भाँन के प्रगटै, उदित भया तम खीनाँ॥
(Not in Syllabus)

Answer

अर्थ - इन पंक्तियों में कबीर जी ने ज्ञान की महत्ता को स्पष्ट किया है। उन्होंने ज्ञान की तुलना आंधी से करते हुए कहा है की जिस तरह आंधी चलती है तब कमजोर पड़ती हुई झोपडी की चारों ओर की दीवारे गिर जाती हैं, वह बंधन मुक्त हो जाती है और खम्भे धराशायी हो जाते हैं उसी प्रकार जब व्यक्ति को ज्ञान प्राप्त होता है तब मन के सारे भ्रम दूर हो जाते हैं, सारे बंधन टूट जाते हैं।

छत को गिरने से रोकने वाला लकड़ी का टुकड़ा जो खम्भे को जोड़ता है वो भी टूट जाता है और छत गिर जाती है और रखा सामान नष्ट हो जाता है उसी प्रकार ज्ञान प्राप्त होने पर व्यक्ति स्वार्थ रहित हो जाता है, उसका मोह भंग हो जाता है जिससे उसके अंदर का लालच मिट जाता है और मन का समस्त विकार नष्ट हो जाते हैं। परन्तु जिनका घर मजबूत रहता है यानी जिनके मन में कोई कपट नही होती, साधू स्वभाव के होते हैं उन्हें आंधी का कोई प्रभाव नही पड़ता है।

आंधी के बाद वर्षा से सारी चीज़ें धुल जाती हैं उसी तरह ज्ञान प्राप्ति के बाद मन निर्मल हो जाता है। व्यक्ति ईश्वर के भजन में लीन हो जाता है।

शब्दार्थ:
• ग्याँन - ज्ञान
• टाटी - बाँस की फट्टियों से बना हुआ परदा
• उड़ानी - उड़ गई
• हिति - स्वार्थ
• चित्त - मन
• यूँनी - खंभा
• बलिंडा - छत पर बाँधी जाने वाली बल्ली
• तूटा - टूटा
• त्रिस्नाँ - तृष्णा
• छाँनि - छप्पर
• कुबधि - सांसारिक वासनाओं वाले विचार
• भाँडा फूटा - भेद खुला
• जोग-जुगति - योग साधना की