Revision Notes for Chapter 8 एक कुत्ता और एक मैना Class 9 Kshitiz
CBSE NCERT Revision Notes1
पाठ परिचय
Answer

यह निबंध 'गुरुदेव' रवीन्द्रनाथ टैगोर जी की व्यक्तिव को उजागर करते हुए लिखा गया है। लेखक ने अपने और गुरुदेव के बीच के बातचीत द्वारा उनके स्वभाव में विद्यमान गुणों का परिचय दिया है। इसमें रवीन्द्रनाथ की कविताओं और उनसे जुड़ी स्मृतियों के ज़रिए गुरुदेव की संवेदनशीलता, आंतरिक विराटता और सहजता के चित्र तो उकेरे ही गए हैं तथा पशु-पक्षियों के संवेदनशील जीवन का भी बहुत सूक्ष्म निरीक्षण है।
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सारांश 1
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रवींद्रनाथ टैगोर का स्वास्थ्य अधिक खराब हो जाने से वे शांतिनिकेतन छोड़कर अपने पैतृक मकान की तीसरी मंजिल पर एकांत में विश्राम चले गए। एक दिन जब लेखक ने भी सपरिवार उनके दर्शन करने चाहे, तब लेखक को देखते ही रवींद्रनाथ बोले थे कि उनके साथ दर्शनार्थी भी हैं क्या? दर्शनार्थियों के समय-कुसमय पर आ टपकने के कारण वे परेशान हो जाते थे। इसलिए डरे रहते थे।
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सारांश 2
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लेखक जब उनके पास पहुंचे, तब वे थोड़े अस्त-व्यस्त थे किंतु फिर भी सूर्य की ओर एकटक देख रहे थे। तभी उनका पालतू कुत्ता वहाँ आया और पूँछ हिलाने लगा। वह गुरुदेव के हाथ का स्पर्श पाकर मग्न हो गया था। गुरुदेव ने कुत्ते को लक्ष्य बनाकर एक कविता लिखी जो आरोग्य नामक बंग्ला पत्रिका में छपी। उसमें वे कहते हैं कि मेरा कुत्ता मेरा स्पर्श पाकर उमंग से भर जाता है। बेजुबान पशु-पक्षियों में मनुष्यता के अनुभव की शक्ति होती है। वे भी मानवीय अच्छे-बुरे व्यवहार को महसूस कर सकते हैं। वे भी दीनता, स्वामिभक्ति, स्नेह तथा आत्मनिवेदन का भाव प्रकट कर सकते हैं। वे मनुष्य की संवेदनशीलता, उसके सुख-दुख को समझते किंतु समझा नहीं पाते हैं। लेखक गुरुदेव की सूक्ष्म संवेदनशील एवं मर्मभेदी दृष्टि पर आश्चर्यचकित हैं क्योंकि उन्होंने कुत्ते जैसे जानवर में भी मानवी विशेषता को अनुभव कर लिया।
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सारांश 3
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जब गुरुदेव की चिताभस्म को आश्रम में लाया गया तो कुत्ता भी उत्तरायण तक गया और सारे मनुष्यों की भाँति कुछ देर तक मौन एवं शांत बैठा रहा। ऐसा देखकर लेखक के आश्चर्य का ठिकाना ही न रहा। गुरुदेव पशुपक्षियों के प्रति अत्यधिक आत्मीय संबंध रखते थे। अतः आश्रम के पशु-पक्षियों के बारे में भी अकसर बातें करते रहते थे।
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सारांश 4
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एक बार लँगड़ी मैना को देखकर वे बोले कि यह यूथभ्रष्ट है, अतः इसमें करुण भाव है। उनकी बात सुनकर लेखक के मन में भी मैना के प्रति करुण भाव उत्पन्न हो गया। हज़ारी प्रसाद जी के मकान में कुछ छेद हैं जिनमें एक मैना परिवार रहता है। वे पता नहीं कहाँ-कहाँ से फटे-पुराने कपड़ों को तथा दूसरे कूड़ा-करकट को ले आते हैं। लेखक ने एक बार तो ईंट रखकर छेद बंद भी कर दिया था किंतु वे बची हुई जगह में अपना निवास बना ही लेते हैं। पहले लेखक मैना के प्रति करुणावान नहीं थे किंतु गुरुदेव की बातें सुनकर उन्हें विश्वास हो गया कि मैना वास्तव में अपने साथी से बिछुड़ गई है तथा एक वियोगिनी का जीवन जी रही है।
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सारांश 5
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गुरुदेव ने मैना पर एक कविता भी लिखी है। उस कविता का भाव है कि यह मैना अपने दल से अलग क्यों है? यह अकेले ही लँगड़ा कर घूम रही है। वह कीड़ों का शिकार करती है, वह लेखक से बिलकुल भयभीत नहीं है। पता नहीं यह अपने समाज से अलग क्यों रहती है? सारी मैनाएँ नाचती-कूदती हैं किंतु यह शोकाकुल है। पता नहीं कि इसे क्या पीड़ा है? किसने इसे चोट पहुँचाई है? न तो इसे किसी पर कोई अभियोग है, न जीवन में विरक्ति है और न आँख में जलन है। न जाने कौन-सी गाँठ इसके हृदय में पड़ी है।
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सारांश 6
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गुरुदेव की इस कविता को पढ़ने के बाद लेखक के मन में मैना की करुण मूर्ति अंकित हो गई। लेखक आश्चर्यचकित है कि गुरुदेव मैना के मर्मस्थल अर्थात दुख तक पहुँचे कैसे? उसी शाम मैना के उड़ जाने से गुरुदेव बहुत दुखी हुए|